Saturday, 4 June 2022

कि अब वो जुल्म ढ़ा भी दें तो कितना ढाएँगे?

कि अब वो जुल्म ढ़ा भी दें तो कितना ढाएँगे?
आख़िर मुर्दों को मार कब तक जश्न मनाएँगे?
हम तो ज़िंदा तब भी ना थे, 
अब क्या ख़ाक जी जाएँगे.

अफ़सोस तो उनका है जो जीने की आस लगाए बैठे,
आज सुबह देखने से पहले मर गए
और हम निहते लोग फिरसे देखते रह गए.

किसी को ना दी चित्ता सजाने की आज़ादी
कोई बेचारा उलझा रह गया कफ़न-दफ़न की तैयारी में
की आज वो अंधकार आ गया भरी दुपहरी में
जब उसको वो चला गया, मेरा भी कोई बिछड़ गया.

पर देख ऐ ज़ालिम
ये जाहिल अब भी मुस्कुरा रहा है
मेरे अपनों, तेरे अपनों
की सड़ती लाशों पर
झूठे आंसू बहा रहा है.

Wednesday, 21 July 2021

कुछ अल्फ़ाज़ बस यूँ ही-37!

मिज़ाज की बात
अब क्या करें
पहले जीने के लिए मर रहे थे
अब मरने के लिए जी रहे हैं
————— 

अब रात हो गयी है
कल रात के देखे सपने
अब अपना दम तोड़ रहे हैं
लम्बी है ये रात
घनी, धुँध, काली
बिलकुल उस रात जैसी......
—————
बेमतलब ना होती
तो बेपनाह कैसे होती? 

मोहब्बत
————— 
अब ये घर में क़ैद रहने वाली बातें मत करो मुझसे,
आज़ाद रूह हो,
निकल जाओ,
उड़ जाओ,
कुछ नहीं तो एक-आध
इंक़लाबी ख़्वाब ही सजा आओ
————— 
अब सारी उम्र झरोखों से ही
आसमान ताकोगी तो
उड़ना कब सीखोगी?
————— 
ज़रूरतें तो बस
रत्ती भर ही हैं
पर कम्बख्त
ख़्वाहिशों का क्या करें?
————— 
तुम्हारे और मेरे बीच इक रोज़
आख़री दफ़ा बात ज़रूर होगी;
तुम्हारी याद से रिहा हो जाने पर
एक सुकून की शाम नसीब होगी
रात मैं नींद आएगी
अगली सुबह उम्मीद भी अपना घर कर जाएगी
————— 
ना जाने कैसे जाहिल हैं वो 
जो शामें ग़म से भर देते हैं
और रातें यादों से रोशन कर
कहीं और चल देते हैं.
————— 
अब कोई मुझे या तुम्हें
बेहूदा करार ही दे
ये रोज़-रोज़ का तुम्हारा जुल्म
ये मेरी रोज़-रोज़ उम्मीद की मौत
का घिनौना खेल
रातों को ना सो पाना
सुबह ना जाग पाना
रोज़ बस यूहीं हार जाना
अब बहुत हुआ
अब ना तुम रहे
ना मैं
अब ये खेल क्यूँ?
————— 
तुम्हारी यादें किसी बक्से में रख कर मैं आगे बढ़ आयी हूँ;
पर ये कम्बख्त बक्सा मेरा पीछा कर रहा है किसी प्रेत की तरह

Monday, 31 May 2021

Out of love - 111!

The day when I set you free from the shackles of my memories
will perhaps be the day I release
my anxieties from my body’s cage
———————-
Now that life’s done us apart
Will death bring us together?
As one?
In one?
None.

•Dream and dreamer•
———————-
Like a flower you bloom
Like a flower you die
So much in silence
While the noise
Sings a lullaby
———————-
Like a dead Chinar leaf
I lay on Jhelum
Jhelum, my home and pyre, both
———————-
In our locked
overly overworked mind
everything is a trap
everything is crap
———————-
On a normal day
I'd just look at the moon
and let it be
but tonight as the tree
offers its protection
I assure myself and them
that some days even the most
magical things
deserve to be held, with care
———————-
Here, have a sip of my memories
make love to my miseries
kiss my pieces, put me to sleep
———————-
All these tragedies of our existence
and
a miracle of survival
———————-
Home,
where I breathe
without having to hear
the sound of my breath.

Home,
where breaths are light
and hopes are always high
———————-
Let me walk you through your miseries,
Allow me to kiss all your anxieties
Let’s sleep through your insecurities
We must wake up to the sound
Of each other’s breath next morning
Our coffee must smell of our being.

Tuesday, 25 May 2021

अब क्या बताएँ?

अब क्या बताएँ  कुछ बताने को बचा है क्या?
उनकी जहालत और अपनी मोहब्बत  
के ऊपर उठ चुका है सब. 

अब ना जाने कौन कहाँ  
राख हो रहा है 
ना पता किसको कौन किधर 
दफ़न कर आगे बढ़ चला है. 

अब क्या बताएँ?
कौन ज़िंदा है, कौन मर गया 
खुद का होश तक नहीं  
ज़माने को बचाने जाएँ कहाँ. 

उनको देखना था आख़री बार 
पर अब वो मर गए 
अब उम्मीद आए भी 
तो करें क्या. 

अब क्या बताएँ?
अहंकार, पाखंड, भ्रष्टाचार 
में समाये हुए 
वो ज़ालिम सुनते भी कहाँ. 

हम यहाँ मर रहे हैं 
हमारे अपने वहाँ मर चुके हैं 
और वो जाहिल पूछ रहें हैं 
बताओ अपना आज हाल क्या. 

Sunday, 14 March 2021

चक्रव्यूह!

काफ़ी समय हो गया है कुछ लिखे। काफ़ी नहीं, शायद बहुत वक्त बीत गया है। मैंने तुम्हारे बारे में नहीं लिखा, अपने बारे में भी नहीं, यहाँ तक की मंडी हाउस के पेड़ों और उन अज़ीज़ खान की गलियों तक के बारे में भी एक लफ़्ज़ नहीं लिखा। अजीब सा दौर है ये। ना लिखने का मन करता है, ना कुछ ख़ास पढ़ने का, बस बार-बार आग़ा शाहिद अली और इस्मत चुगताई की वही सौ बार पढ़ी किताबों के ही पन्ने पलटती रहती हूँ। ठीक से मालूम नहीं कि पढ़ती भी हूँ या नहीं, क्यूँकि उन पन्नों पे लिखे शब्दों से मैं इतनी वाक़िफ़ हूँ की ना भी पढ़ूँ तो लगता है कि पढ़ लिया है। आजकल तबला की साधना भी कम करती हूँ। इन सब बातों का कोई मतलब होता होगा, पर मुझे अभी पता नहीं है। एक सच ये भी है की मुझ में अभी इस बात पर सोच-विचार करने की क्षमता भी नहीं है।

उन पर भरोसा था, अब नहीं है। यक़ीन तो मुझे तो कहीं ना कहीं था ही की ये लम्हा ले दे कर आ ही जाएगा, पर ऐसे आएगा, इस बात का इल्म मुझे ज़रा कम था। ये क़िस्सा भी अब बड़ा घिस्सा-पिटा सा हो गया है। मेरा उनके लिए जन्नत-जहां एक कर देना और उनका मुझे तवज्जो ना देना। अब ये चक्र भी बड़ा अपना सा लगता है। इसमें होने वाली हर चीज़ से अब मैं रूबरू हो गयी हूँ। कुछ ख़ास नहीं है, वही है। पर हर बार की तरह ये मुझे, भड़भड़ा रहा है। पर ये हो रहा है, तो ये भी एक तरह का सत्य बन गया है।

चिंतित तो नहीं हूँ, पर ज़रा विचलित ज़रूर हूँ। बस इतना ही है। बाक़ी तो बल्लिमरान, मंडी हाउस और ख़ान के सहारे सब, इंशाल्लाह ठीक हो ही जाएगा।

Wednesday, 3 March 2021

इन तमाम मकानों में इक घर हो!

इन तमाम मकानों में इक घर हो,
घर में कुछ खिड़कियाँ हो
जहाँ से सुकून और ज़रा सी उम्मीद आए.

इन तमाम मकानों में इक घर हो,
जहाँ चैन की नींद आए
कुछ ख़्वाबों की किलकारियाँ साथ लाए.

इन तमाम मकानों में इक घर हो,
सवेरा जहाँ चाय पकने के ख़ुशबू से हो
और रात देसी घी के महक से रोशन हो.

इन तमाम मकानों में इक घर हो.....

Friday, 26 February 2021

इन लोगों के हुजूम में!

इन लोगों के हुजूम में
तुम भी हो और मैं भी

इन लोगों के हुजूम में
बसता है अल्लाह भी और राम भी

इन लोगों के हुजूम में
मर्द भी हैं और औरतें भी

इन लोगों के हुजूम में
बुजुर्गों की दुआ और बच्चों की किलकारियाँ भी

इन लोगों के हुजूम में
डर भी और इंक़लाब भी

इन लोगों के हुजूम में
बसी है जन्नत भी और इनसे ही बनता जहनुम भी

इन लोगों के हुजूम में
इन्हीं लोगों के हुजूम में......

Sunday, 20 December 2020

Sheermal!

Sheermal, a dish 
I was first offered as a gift
From someone which I back then
had not known

Sheermaal, a type of bread
which involves elite and luxurious ingredients 
like saffron and cream
and comfort elements like egg and milk

Sheermaal, a reddish brown bread
which is first heated in a tandoor
and then buttered with warmth

Sheermaal, that thing which fills me
with love, warmth and comfort
in this harsh winter.

Sheermaal, a ray of hope
I hold on to for sweetness
After the most mundane days
Or just 2020!

Sunday, 22 November 2020

On Sunday evenings!

On Sunday evenings,
I feel like a child locked in
the bathroom.

The bathroom,
which is both dark and
full of cockroaches and lizards.

Lizards,
the reptile that I don’t like,
after snake and so I sweat.

Sweat,
my only constant from Sunday evening
to a wretched Monday morning.

Monday morning,
a portrait of my fears and
a fake fearless face that I’ll put up.

I’ll put up,
with the mood swings of those I love 
and in return, I’ll be ignored.

Ignored,
is my new favourite state
after being deeply loved.

Loved, 
the Sunday, the day, I mean 
but then this Monday.

Monday......

Wednesday, 4 November 2020

कुछ अल्फ़ाज़ बस यूँ ही-37!

आसान नहीं है ये दौर,
इसलिए शायद जब अच्छा नहीं लगता तब आब पीती हूँ
बाक़ी दर्द से मर ना जाऊँ
इसलिए चंद रोज़ शराब पीती हूँ
—————-
तुमसे इश्क करने की सज़ा तो मुझे मिलनी ही चाहिए,
अगर अपनी तबाही की राह मैंने ये चुनी है तो
मुझे इस कुर्बानी में ही सुकून मिलना चाहिए
—————- 
अल्लाह का आकार नहीं
शंकर का ना आदि ना अंत
दोनो की इबादत में
सुकून ही तो है
वो दोनो एक ही तो है
—————- 
ना जाने तुम्हारा सही कैसा सही है
की हर बार मेरे लिए ग़लत होता है
तुम्हारी आग ना जाने कैसी है
जो जलती तो शायद तुम्हारे ही अंदर है
पर राख हर बार मुझे ही करती है
—————- 
सुनो एक काम करो
मेरा दिल बाहर खींच लो
इसको मसल दो, चीथड़े कर दो
ये रोज़-रोज़ का क़िस्सा ख़त्म कर
मुझे अपने इश्क़ के क़ैद से
अब रिहा करो
—————- 
तुम पर अपना सब कुछ
लुटा देना मेरा इश्क़ था
तुमसे ज़रा सा चाहना
मेरी तबाही की वजह
—————- 
कमाल तो तुम ही करते हो
ऐसा व्यवहार करते हो
और फिर पूछते हो
तबाह होना क्या होता है
—————- 
जवाब तो उन जैसों
के ही नसीब होता है
हमारे हिस्से तो बस
इंतज़ार और तड़प ही है
—————- 
अब हमें आदत हो गयी है उनकी बेरुख़ी की
कहीं हम ऐसा कर देते तो, बेहूदगी हो जाती।
—————- 
क्या बताएँ, कुछ बताने को बचा है क्या?
तुम्हारी याद में तबाह होने के सिवा अब कुछ रखा है क्या?

Sunday, 23 August 2020

Happiness!

Happiness 

It is a timeless ease

It looks like Ma’s chiffon saree’s that she no longer wears but looks at them like her first love 

It sounds like Dadu’s morning prayer which he never uttered with his lips 

It tastes like warm and not hot, cup of coffee with a dash of caramel

Happiness

It is my room’s un-repaired silent clock


Thursday, 20 August 2020

In my dreamland!

In my dreamland
I see myself sleeping in your lap
as you brush my hair

In my dreamland
my nightmares don’t exist
they’re perhaps on Jupiter

In my dreamland
cobras and pythons aren’t ripping apart each other
in fact, unicorns and dragons
are chilling together 

In my dreamland
my screams are only for
reaching out to my favourite ice cream
not of fear making me dread another dream

In my dreamland
there are no wretched days
of overthinking and anxieties
it’s all about rainbow smiles and starry skies

It’s all in the dreamland,
unreal, unrealistic, unimportant.


Wednesday, 19 August 2020

Promise me my love!

promise me my love,
you will never mistake
a prayer for a miracle

promise me my love,
you will choose to
remain what you're, despite

promise me my love
in no life will you mistake
attention for care

promise me my love,
to never love anyone
more than your own self

Thursday, 30 July 2020

कुछ अल्फ़ाज़ बस यूँ ही-36!

अजीब खेल बन गया है ये पहचान का
आज मन करता है की बस मर जाऊँ
कल रात, मन करेगा बस यूँही कुछ और पल जीने का.
——————
बात तो बस इतनी सी ही थी
उनको मेरी ज़रूरत भर रही
इश्क़ तो बस हमारा ही
ज़ख़्म भी यूँ बस सड़ता ही रहा
—————
काश की उनके इश्क़ का भी बस रंग भर चढ़ता,
कम से कम उतारने की उम्मीद तो होती,
अब तो वो आदत भी नहीं इबादत बन गए है
रोकें भी तो कैसे, रुकें भी तो कैसे
———————
यक़ीन तुम पर नहीं,
अपने इंतज़ार पे है,
कि इक रोज़ जब तुम आओगे
तो ऐसा भी होगा,
की उम्मीद का धागा नहीं भी टूटेगा
—————-
बेअदबी का दौर तो है ही,
रंगमंच सी ज़िंदगी को
रण्डभूमि जो बना लिया.
—————-
ना-उम्मीदी तो उन नसीबवालों
को ही होती है जिनके दर इक रोज़ उम्मीद आयी हो,
हम जैसों को तो बस इंतेज़ार नसीब
होता है
—————
बनाके तो वो हमें खेल गये थे,
ना जाने वक़्त वक़्त कैसा बीता की,
हम बस तमाशा बन कर रह गए
———-
कमाल तो ख़ाक सी साँसों का है
ना मौत आने दें
ना ज़िंदगी जीने
————-
ये बात अगर बस, इस बार, या उस बार की हो
तो क्या ग़म, ये बात तो हर बार की है
की बस तुमको चाहने की क़ीमत चुकता
करने के लिए रोज़, हर रोज़
अपनी बली चढ़ा देती हूँ.
——————
दौर तो ये ग़ज़ब का है ही
यहाँ हम उनका ता-उम्र
इंतज़ार करने तक को बैठे हैं
और वो हैं की
मुड़ कर भी नहीं देखते हैं

Monday, 25 May 2020

Sorrow!

Sorrow
It is, that un-warm hug that you refused to give as you lay dead on your favourite carpet
It looks like, that jammed window which I know I can open but I don’t know when I will
It sounds like, my boss giving un-ending deadlines to the deceased
It tastes like, a combination of spinach and tulsi, healthy, but oh so awful
Sorrow
It is, unlike this moment, right now, I timed it is 8:51pm

Sunday, 24 May 2020

Out of love - 110!

But reflections are a part of you,
Not all of you.
————-
And then each bit,
Every part of it,
Was picked up,
Put together,
Stitched all over again,
Rebuilt, recreated,
Renewed, relived.

Catharsis?
————-
The choice was clear,
It was always you,
This time and that
And a hundred million times over
————-
You don’t have to
Sprinkle that smelly kerosene,
And light a match stick
to burn my heart,
and set my love on fire
you just have to ignore
To convert it all into ash.
————-
No bit of you should ever be forgotten,
I must immortalise your being before I perish.
I must.
————-
For the likes of us,
Rain will always be that one thing
Which opens up all ignored
Pores of our being
Making us want more of our own.
————-
Have you ever imagined how would it be
If the sea and the rain meet each other
In those moments of intimacy that’d reek of honesty,
Have you felt the urge to see your own love story
In a way like that, seemingly unreal
Being the only reality you’d ever want to see
————-
It felt as if one was first asked
and then told
to lodge a blunt knife in their chest,
pull out the heart
cut it open
watch it bleed profusely
do nothing about it
and also be okay with it
————-
When you look at sky of your unfelt dreams
Do you remember how to be?
When you live through an excruciating scream
Are you reminded of the unholy scenes?
When you bleed from places unseen
Do you aid it with the power of being?
————-
In absence of death,
they found some damaged breath
with these un-rhythmic breaths they were declared alive.
You see the likes of us so used to rejection,
exist because much like others death too rejects us.

Have you ever felt like Kashmir?

Have you ever felt like Kashmir?
Burdened by the feeling of paradise,
while you’re just torn from places?
Has your Jhelum like soul ever felt
It will one day be under curfew
And you will not know if you’d
want to long for death or for another breath.
Does your body feel like a Chinar tree?
Ignored normally, but on losing leaves
that beautify their streets it becomes desired
as probably and hopefully, you too would be on leaving your body.
Like red apples which are left to rot in dungeon godowns.

Wednesday, 20 May 2020

बताना चाहती हूँ!

बताना चाहती हूँ
की तुमसे बेपनाह इश्क़ है मुझे
जताना नहीं है, बस बताना है
मालूम है मुझे है की तुम्हें
इस बात का इल्म मुझसे बेहतर है
पर फिर भी बस बताना है मुझे

बताना चाहती हूँ
की इक रोज़ जब कोई पूछेगा
की अपनी आख़री साँस या
उसकी बस एक और मुस्कान
के बीच चुनना होगा
तब भी मैं वो मुस्कान चुनूँगी

बताना चाहती हूँ
की तुम्हारे होने या ना होने से
फ़र्क़ नहीं पड़ा है.
जब तुम थी सब बहुत खूबसूरत था
अब तुम्हारी याद का सौंदर्य
जीने की वजह सा बन गया है

बताना चाहती हूँ
की तुमसे इश्क़ की चाहत
मेरी ताक़त रही
इसलिए कभी ज़रूरत नहीं बनी शायद
और तुम जैसा कहती हो ज़रूरतों से
हम रिहा भी हो जाएँ
चाहत हमेशा रहती है
दिल के किसी कोने में
मिठास और कड़वाहट लिए
ज़िंदगी का अहसास समेटे हुए
तुम्हारे इश्क़ की चाहत
बनी रही.

Friday, 1 May 2020

All things life prepared me for!

All things life prepared me for, included wars, but not failures
As if men and women only failed on Mars
And on Earth they were only meant and programmed to win.

All things life prepared me for, had me drool over dreams that they saw,
As if my imagination was incapable of imagining sun make love to water and turn the entire ocean into gold
But, you see on Earth, dreams are made of concrete, desires are components of unwanted ties and emotions are always considered as fatal as cyanide.

All things life prepared me for, were not meant for me,
I just wanted to be,
in a home not house
in Delhi not Noida
in ecstasy not cage
in bandages not heavy drapes
in trans not senses
in college not school
in ocean not balconies
in being not body
in atoms not chemicals
in rhyme not whine
in life not trap.

All things life prepared me, was for a house
Made up of four walls and a ceiling only,
While I was meant for home,
a place which would possibly be
A cross between passions and unfinished novels.

Sunday, 12 April 2020

Home!

Home, is not where the heart is
It’s possibly somewhere,
where the soul is in sync with being and belonging.

Home, where the coffee is not a perfect brew
and has some extra sugar too
But tastes like an ocean in a desert.

Home, where I can smell ageing paper
and not be reminded of the books,
I need to read and the presentations I must make.

Home, where sleep comes naturally,
and does not wake me up, 
with nightmares leaving me smelly sweaty.

Home, where in my unkempt hair
and Un-ironed T-shirt
I feel my breath pass like breeze.

Home, not four walls and a mere ceiling.