तब तुम थे, अब मैं हूँ। हम तो खैर ना तब थे, ना अब हैं।
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अब हार भी गए तो क्या ?
अब अगर जीत को ना चूम पाए तो क्या ?
अब तुम हो
और
वो मेरी जीत भी है और कामीयाबी भी |
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अब हार भी गए तो क्या ?
अब अगर जीत को ना चूम पाए तो क्या ?
अब तुम हो
और
वो मेरी जीत भी है और कामीयाबी भी |
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कितनी अजीब बात है, तुम मेरी चाहत से ज़रूरत बन गई और तुम्हें पता भी नहीं चला। मैं के रह गयी और तुम्हें दिखा भी नहीं।
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इज़हार के इंतज़ार मे काफी गलतियां भी की कुछ मौके भी गवाए |
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गिरने से हार नहीं होती। हार तो सिर्फ हार मनाने से होती है।
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मुझे सपनें और कहानियाँ इसलिए नहीं पसंद क्यूँकि वो मेरे ना चाहते हुए भी वो या तो अधूरे रह जाते हैं या फिर खत्म हो जाते हैं ।
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नींद कहाँ से आएगी
जब तन्हा रातें
अस्मंजस में बिताई जाएँगी...
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स्वाभिमान और अभिमान में उतना ही फर्क होता है जितना की लालच और तरकी में होता है.
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दिल तोड़ दिया, चलो कोई बात नहीं पर अन विश्वास पर प्रहार मत करना |
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रातें और यादें जितनी उलझी रहें उतना कम दर्द होती है।
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