पहले पानी प्यास बुझाता था, अब आंसुओं ने पानी की अहमीयत ही खत्म कर दी और प्यास अपने आप ही मर गयी.
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क्या तुम्हें मेरी बातों में अपने लिये इंतजार महसूस नहीं होता?
क्या तुम्हें मेरी बेचैनी में अपनी चिंता नज़र नहीं आती?
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बात तो तुम में ज़रूर कुछ है,
जो तुम मुझे मेरे ही इज़हार में
मेरी खुद की हार दिखा देते हो।
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ख़ासियत है ग़म की, हमेशा अकेला ही आता है.
ना ख़ुशि का साया ना उम्मीद की किरण.
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तन्हाई से रिहाई की भीख माँग कर भी अब थक चुकी हूँ.
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क्या तुम्हें मेरी बातों में अपने लिये इंतजार महसूस नहीं होता?
क्या तुम्हें मेरी बेचैनी में अपनी चिंता नज़र नहीं आती?
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बात तो तुम में ज़रूर कुछ है,
जो तुम मुझे मेरे ही इज़हार में
मेरी खुद की हार दिखा देते हो।
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ख़ासियत है ग़म की, हमेशा अकेला ही आता है.
ना ख़ुशि का साया ना उम्मीद की किरण.
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तन्हाई से रिहाई की भीख माँग कर भी अब थक चुकी हूँ.
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समझ तो ख़ैर नहीं पायी हूँ
लेकिन फिर भी
बस इतना जान गयी हूँ
की ज़्यादा प्यार और घुटन
में कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं होता
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लगता है इस खेल में नए हो,
इसीलिए शायद
मोहब्बत से क़ायदे की
और वक़्त से भरोसे
की उमीद पाल रहे हो
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हर रास्ते को मंज़िल मिल जाए ये ज़रूरी नहीं
लेकिन, हर मंज़िल का रास्ता तो होता ही है
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अब तो नींद की फ़ितरत भी इंसानों जैसी हो गयी है,
जब मन करता है तब दग़ा दे जाती है।
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