लोग कहते हैं वक़्त किसी का मोहताज नहीं होता. मैं कहती हूँ कला के अलावा मैं किसी और चीज़ की मोहताज नहीं हूँ. हाँ! ये सच है की मे वक़्त बरबाद करती हूँ , कभी कभी कुछ ज्यादा ही. पर मैं ये बात कभी नहीं मानूंगी की मैं वक़्त की गुलाम हूँ. ऐसा नहीं है की मैं कोई नायाब इंसान हूँ, बस फरक इतना है की लोग वक़्त की और मैं कला की गुलामी करती हूँ.
किसी ज़माने मैं वक़्त की भी दिन-रात सेवा करा करती थी पर उससे सिर्फ मुझे थकान महसूस होती थी. हर चीज़ के लिए मैंने अपना वक़्त निर्धारित कर रखा था. लग रहा थी की ज़िन्दगी किसी घडी की तरह हो, जो चलती तो है पर उसका कोई वजूद नहीं है. ऐसा लगता था की बस सांस ले रही हूँ क्यूंकि वो ज़रूरी है, जी रही हूँ बस पर जिंदा नहीं हूँ. एक दिन इस वक़्त की गुलामी से तंग आकर मैंने इस ज़ालिम वक़्त को लात मारी और वो करना प्रारंभ किया को मुझे पसंद आता था.
धीरे-धीरे मैंने जब वक़्त की गुलामी छोड़ अपने दिल की बात को सुन्ना शुरू किया तब मुझे ये एह्स्सास हुआ की ये ज़िन्दगी कितनी हस्सीन, और हर लम्हा कितना ख़ास होता है. एक महत्वपूर्ण बात की आखिर कला क्या चीज़ होती है? नाचना?, गाना? बजाना? आदि. सही म्य्नों मे इसकी परिभाषा तो शायद ही कोई बता पाए पर मेरे लिए कला हर वो चीज़ है जिसे करने के बाद आपका दिमाग शांत और आत्मा को सुकून का आभास हो. हर वो चीज़ जो आपको दुनिया के शोर शराबे से दूर, इस कभी न ख़तम होने वाली दौड़ से अलग ले जाये वो कला होती है. ये एक ऐसी गुलामी है जिसके बाद आपके अन्दर जीवन को जीने का जोश आ जाता है. हर सांस खूबसूरत लगने लगती है
गुलामी करनी है तो उस चीज़ की करिए जो आपकी मुस्कान का कारण बने.
अपने सपनों की गुलामी करिए, अपने हर शौक की गुलामी करिए, अपने अपनों की मुस्कान की गुलामी करिए.
इस कला की गुलामी को जो अपने जीवन का मकसद बना ले मेरे अनुसार उससे ज्यादा सुखी इंसान कोई हो ही नहीं सकता.
किसी ज़माने मैं वक़्त की भी दिन-रात सेवा करा करती थी पर उससे सिर्फ मुझे थकान महसूस होती थी. हर चीज़ के लिए मैंने अपना वक़्त निर्धारित कर रखा था. लग रहा थी की ज़िन्दगी किसी घडी की तरह हो, जो चलती तो है पर उसका कोई वजूद नहीं है. ऐसा लगता था की बस सांस ले रही हूँ क्यूंकि वो ज़रूरी है, जी रही हूँ बस पर जिंदा नहीं हूँ. एक दिन इस वक़्त की गुलामी से तंग आकर मैंने इस ज़ालिम वक़्त को लात मारी और वो करना प्रारंभ किया को मुझे पसंद आता था.
धीरे-धीरे मैंने जब वक़्त की गुलामी छोड़ अपने दिल की बात को सुन्ना शुरू किया तब मुझे ये एह्स्सास हुआ की ये ज़िन्दगी कितनी हस्सीन, और हर लम्हा कितना ख़ास होता है. एक महत्वपूर्ण बात की आखिर कला क्या चीज़ होती है? नाचना?, गाना? बजाना? आदि. सही म्य्नों मे इसकी परिभाषा तो शायद ही कोई बता पाए पर मेरे लिए कला हर वो चीज़ है जिसे करने के बाद आपका दिमाग शांत और आत्मा को सुकून का आभास हो. हर वो चीज़ जो आपको दुनिया के शोर शराबे से दूर, इस कभी न ख़तम होने वाली दौड़ से अलग ले जाये वो कला होती है. ये एक ऐसी गुलामी है जिसके बाद आपके अन्दर जीवन को जीने का जोश आ जाता है. हर सांस खूबसूरत लगने लगती है
गुलामी करनी है तो उस चीज़ की करिए जो आपकी मुस्कान का कारण बने.
अपने सपनों की गुलामी करिए, अपने हर शौक की गुलामी करिए, अपने अपनों की मुस्कान की गुलामी करिए.
इस कला की गुलामी को जो अपने जीवन का मकसद बना ले मेरे अनुसार उससे ज्यादा सुखी इंसान कोई हो ही नहीं सकता.
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