ये लोग मुझे बता रहें हैं
की मुझे लोगों से संभल कर
उनसे बच कर
शायद डर कर भी
रहना चाहिए।
पर ये लोग भी
तो उन्हीं लोगों
का ही तो अंश हैं
तो फ़िर ये लोग
इन लोगों में फ़र्क
क्यूँ करते हैं?
क्यूँ नहीं समझते उन्हें
ये अपना जो इनके अपने हैं?
क्या ये लोग अपने लोगों
के अपने नहीं हैं?
क्या ये लोग
लोगों को लोगों की तरह
नहीं देखते?
क्या ये लोग
नफ़रत और दरिंदगी के
इतने नीचे दब गये हैं
कि इन्हें लोगों को देखने से पहले ही
लोगों से गर्हिना होने लगी है?
ये लोग जो
आज लोगों की वजह से हैं
ये उन लोगों के ही नहीं हैं
कैन हैं ये लोग?
क्या हैं लोग?
का से हैं ये लोग?
ये लोग।
की मुझे लोगों से संभल कर
उनसे बच कर
शायद डर कर भी
रहना चाहिए।
पर ये लोग भी
तो उन्हीं लोगों
का ही तो अंश हैं
तो फ़िर ये लोग
इन लोगों में फ़र्क
क्यूँ करते हैं?
क्यूँ नहीं समझते उन्हें
ये अपना जो इनके अपने हैं?
क्या ये लोग अपने लोगों
के अपने नहीं हैं?
क्या ये लोग
लोगों को लोगों की तरह
नहीं देखते?
क्या ये लोग
नफ़रत और दरिंदगी के
इतने नीचे दब गये हैं
कि इन्हें लोगों को देखने से पहले ही
लोगों से गर्हिना होने लगी है?
ये लोग जो
आज लोगों की वजह से हैं
ये उन लोगों के ही नहीं हैं
कैन हैं ये लोग?
क्या हैं लोग?
का से हैं ये लोग?
ये लोग।
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