ज़मीन बाटने का वक़्त है,
नफरत को पनाह देने के लिए बहुत जगह है
मज़हब पर लड़ने के हज़ारों बहाने हैं
लेकिन
किन्तु
परंतू
तन्हाई बाटने का समय नहीं है
प्यार को स्वीकार ने के लिए दिलों में जगह नहीं है
शान्ति का पैगाम लहराने की एक भी वजह नहीं मिलती
आखिर क्या हो गया है दुनिया को?
क्या इस इंसानों की दौड़ ने
इंसानियत का ही कतल कर दिया?
क्या इस इंसानों की दौड़ ने
इंसानियत का ही कतल कर दिया?
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