Tuesday 29 October 2019

कुछ अल्फ़ाज़ बस यूँ ही-32!

शुक्र है उन्होंने हमारे दिल की मज़हार पर फूल तो चढ़ा दिए,
वरना हमारी आशिक़ी की रूह तक को सुकून नसीब ना होता.
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होश में ज़िंदगी बर्दाश्त नहीं होती,
और मदहोशी ज़िंदगी को गवारा नहीं.
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हमको क्या तोड़ेंगे वो,
हमारे तो दिल और रूह
के बीच ही दरार है,
ना एक पल का चैन है
ना अब जीने की आस है.
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नसीब वाले हैं वो जो महज़ यादें
जला कर याद से रिहा हो गए,
हम जैसों को देखिए,
राख हो कर भी उनकी याद में क़ैद हैं.
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अगर रात हसीन ना भी हो
तब भी सुबह का तेज तो
आँख खोल और ज़मीर झँझोड़ के रख ही देगा.
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उनको क्या मालूम
इंतज़ार की ख़ुशबू
उनको जिनको
इश्क़ तक का इल्म नहीं,
वो क्या समझेंगे तन्हाई की आग
बेचैनी से बनती हुई हमारी राख
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कमाल तो है ही ख़ैर,
की वो ही ज़िंदगी के टुकड़े हैं
और ज़िंदगी टुकड़ों में भी उनकी वजह से है।
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वो शाम इतनी ख़ूबसूरत थी,
बस अगर उसकी याद ना आती,
तो शायद ज़िंदगी भर
उस वक़्त के आबो-ताब
को मैं अपने सीने में संजो के रखती.
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उनकी याद में आज हमने
महफ़िल सजायी है
तन्हाई और यादें
सज-धज के आएँगी
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जिन्हें सोचा था हाल-ऐ-दिल बताएँगे
वो दिल कुचल कर चले गए
अब सब कमबख़्त पूछ रहे हैं,
हाल हमारा, क्या बताएँ?
दिल का जनाज़ा भी तो नहीं निकलता

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