Monday 17 June 2019

What is a story?

What is a story?
A truth you’ve suffered?
A tomorrow that you crave?
An attempt to archive
What you’ve felt?

What is a story?
An agony aunt?
A crystal ball?
State of mind at 420?

What is a story?
Your companion is disguise?
Your soulmate at 4am?
Your pawn?

None,
A story is versions of you,
Good, bad and ugly
Real, unreal and surreal
It lives through you
Even after your death
Till eternity.

A story.

Monday 10 June 2019

मेरी जन्नत भी तुम और मन्नत भी!

सुना है
कि माँ एक होती है
मेरी तो एक से ज्यादा हैं
तुम सोच रहे होगे
कि ऐसा कैसे ?
मैं बताऊँ कैसे ?

मेरी माँ तो मेरी माँ
है ही
लेकिन उसके अलावा तुम हो
जो मुझसे शायद मेरी माँ जितना
या उनसे भी ज्यादा प्यार करती है

जब मैं तुम्हारे पास आती हूँ
ऐसा लगता है की सब ठीक है
डर और चिंता भी मानो
तुमसे घबरा कर भाग गए हैं

जब मुझे नींद नहीं आती
तब तुम्हारी गोद मुझे सबसे
पहले याद आती

गलत कहते हैं वो लोग
जो जन्नत माँ के पैरों में
ढूँढ़ते हैं
मेरी जन्नत और मन्नत तो
तुम्हारी मुस्कान है
वो मुस्कान जो
मुझे देख कर और भी
'खिल जाती है

जब तुम पास होती हो
तब एहसास नहीं होता तुम्हारी ज़रुरत का
जब नहीं होती हो
तब तुम्हारे बिना
मेरा कुछ नहीं होता

तुम वो हो जो
मेरी ज़रुरत का
मुझसे ज्यादा ख़याल
रखती हो
और ये लोग कहते हैं
कि तुम मेरी माँ नहीं लगती हो

शायद ,
तुम मेरी माँ नहीं हो
पर माँ से कम कभी
हो भी नहीं सकती हो |

साझेदारी नहीं, समझदारी!

सही कहते हैं वो
जो मुझे बेवक़ूफ़
और नासमझ कहते हैं .

मैं नासमझ ही हूँ
क्यूंकि जब सब
समझदारी को पाने
के लिए दौड़ रहे थे
मैं रिश्तों की
मिठास और साझेदारी की
चादर ओढ़ कर
सो रही थी.

आज फिर एक बार तुमने
सिखा, दिखा, और समझा दिया
कि रिश्ते साझेदारी नहीं
समझदारी से निभाये जाते हैं.

चलो, कोई बात नहीं
तुम तो खैर हो ही समझदार
मैं ठहरी नासमझ और बेवक़ूफ़
तुरी एक आवाज़ पर दौड़ी
चली आने वाली.

खैर, कोई नहीं
एक बार आज फिर तोड़ दिया
तुमने वो जो
मैंने इतने मुश्किल से जोड़ने
की तमाम नाकाम कोशिशें
करीं थी.

हाँ, हाँ
वही दिल जिसे अब
तुम्हारी आदतों और हरकतों
की वजह से अब
टूटने की आदत ही
हो गयी है.

अगर फिर कभी
लगे की ज़रुरत है
मेरी या मेरी साँसों
तो फिर याद कर लेना
मैं फिर आ जाउंगी .

और फिर तुम्हे अपने आप
अपना दिल और अपनी जान
देने के लिए तैयार हो जाउंगी.

तुम फिर ले लेना
जो चाहो
मैं तो वैसे भी
बेवक़ूफ़ ही हूँ.

ना जाने ऐसा क्या हुआ!

ना जाने मुझसे ऐसा
क्या हो गया
की मेरा मानो सब कुछ ही
खो गया

ना नींद आती है ना चैन,
बस दिन रात उस गलती को
समझने की कोशिश करती हूँ
जो मैंने शायद की ही नहीं है

तुम को शायद खो दिया है मैंने
या फिर शायद कभी पाया ही नहीं था
पर वो जो पल साथ बिताये थे
शायद उन्हीं ने ज़िन्दगी का मतलब सिखाया था

चलो, खैर अब तो
" गुज़र गयी गुजरान
क्या झोपडी क्या मकान "
वाली बात है

तुम जहाँ भी हो खुश रहो
मैं तुम्हारी यादों के साथ
अपनी तन्हाई को मिटा लूंगी
मैं भी सांसें तो आखिर ले ही लूंगी

कभी बताया नहीं आपको!

कभी बताया नहीं आपको
की आपकी कितनी याद आती है
ये बात शायद
सिर्फ,
अँधेरी रातों
मे चमकते हुए
चंद तारों को ही
पता है

और वैसे भी
अब आप दीखते कहाँ है
जो कोई बात आपसे करी जाए
आप तो खुश होंगे
उस दुनिया में भी

हर हाल में
मुस्कुराने की वजह
ढूँढना तो आपकी
काफी पुरानी आदत है
अब तक तो काफी खुशियाँ
ढूँढ ही ली होगी आपने

मुझे याद पता नहीं
करते हैं या नहीं आप
पर मेरा गीला तकिया
इस बात का गवाह है की
मुझे आपकी कमी से ज्यादा
शायद ही कोई और चीज़
है जो इस वक़्त खल रही हो

आज जब इतनी बैचैनी
हो रही है
सब कुछ फिसलता हुआ
नज़र आ रहा है
तब कोई एक भी
ऐसा नहीं है
जो मुझे गले से
लगा कर शांत करा सके

अगर जाना ही था
तो तनहा रहने की
आदत ही डलवा जाते
क्यूँ लगवाई अपनी आदत
जब साथ निभाना ही नहीं था? 

Sunday 9 June 2019

कुछ अल्फ़ाज़ बस यूँ ही-29!

एक रोज़ इतना धुआँ हो,
की सच की हेवानियत
मेरे खोकलेपन को ललकार ना पाये.

वो क्या है की दिल के चीथोड़ों
को अभी मैं समेट ही रही हो,
क्लब के टुकड़े उठाने का अभी
मेरे पास वक़्त नहीं....
—————-
अब जीत कर भी क्या करेंगे?
अपने ख़्वाबों को तो हार ही चुके हैं..
——————
जब तक इश्क़ ढ़ूँड रही हूँ तुझमें,
जब तक खेल रही हूँ तेरी दर्द की आग से
तबाह कर ले मुझे,
किसी दिन अपने अंदर के इश्क़ से मोहब्बत हो गयी
तो ना तेरा ये आशिक़ बचेगा,
ना मेरी तन्हाई आबाद होगी.
—————
मेरे इश्क़ और तेरे इश्क़
में बस एक फ़र्क़ था,
मुझे तुझसे और तुझे उनसे
इश्क़ हुआ.
——————
अगर उन्हें हमारे दर्द का इल्म भर होता,
तो आज ना कोई दर्द होता, ना ग़म.
—————
सुनने में आया है की वो,
आज-जीने मरने की बात कर रहे हैं,
कोई ख़बर करो उन्हें,
की अगर मौत इतनी आसानी से आ जाती,
तो ना जाने आज हम कितनी बार मर चुके होते.
——————
वो बड़ी बेबाक़ी से कह देते हैं,
“क्या चाहती हो, मैं मर जाऊँ”
यूँ तो मैं अपने होश में हर बार ना कह देती हूँ,
लेकिन ज़रा सा डर है मुझे उस लम्हे का
जब ये सवाल वो मदहोशि में मुझसे पूछेंगे
और मेरे मुँह से हाँ निकल जायेगी.
—————-
तुम्हारे इश्क़ की आग में जलने का जज़्बा अभी मुझमें और है,
चिंता मत करो राख होने से पहले तुम्हें अपना हाल-ऐ-दिल ज़रूर बताऊँगी.
————-
ये वक़्त जो तुम्हारी चिंता में,
मुझे खा रहा है,
क्या तुम्हें पता है,
की मेरा दिल तुम्हारे
इस बर्ताव से बिना बात में
मरा जा रहा है.
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कभी जानने की कोशिश करोगे तो नहीं,
पर फिर भी, कह देती हूँ,
तुम्हारे नहीं अपने लिए,
मेरे दर्द की वजह वैसे तो तुम हो,
लेकिन अहसहनीय दर्द की दवा,
सिर्फ़ तुम्हारी याद ही है.

तुम, दुआ और सज़ा दोनो हो.

Thursday 6 June 2019

When I say that!

When I say that, 
I am choking in this open air
You will believe me.

I am not asking you,
I’m telling you,
You see
And very similarly
When I say that
I will breathe through
This gas chamber
You will watch me
And not question me.

I am a believer,
And so I don’t
Question your science
It’s not my business,
I stay out of it,
But, you, the one who
Claims to know it all
Denies what I choose
To be real at all.

You, the ones who have
Got their science, maths and logic
Absolutely-perfectly-right,
Say, that this magic and all
Is oh so naive.

You, the ones who build
But never create
Tell me, aggressively
That, This and that,
Make it,
Without knowing
What ‘it’ is,
What it holds and beholds.

You, the ones who see
The rising sun
And the fading moon
As just a differentiator
Between the morning and night,
How will you define the evenings
And the days that are spent
Without mind and sight?

Yes, there are days,
When the mind sleeps
Soul meditates
And heart beats,
Just like that,
On the days the
Science is tired
Art comes to it
Pats it,
Puts it to sleep.

But, oh of course,
How would you believe.
It’s all in an imaginative head’s
Rotten mind.

Come to me past
Your night
And before morning
I will show you
What miracle and storm
Feel like, alike.

Saturday 1 June 2019

Out of love - 101!

What quenches your thirst?
Water? Cold water? Tea?
Coffee? Cold drink? Rum?
Wine? Whiskey? Lover’s kiss?
None!
Your being is a drought,
None can ever be enough
To satiate your thirst.
———————-
Why brave it,
When you can embrace it?
——————-
I’ve breathed through the cremation of my soul and the burial of my dreams,
Yet you tell me, that death is the most scary being.
What about breathing through the death of being?
Isn’t that worse than immersion of your mortal being?
—————————
Do winners of war,
Not lose their parts in it?
——————-
Wash your wounds child,
We’ll talk about sins later,
The rain said to the sinner.
———————-
The fear is,
Of, for and about
Next breath,
Not death.
—————
Breathlessness doesn’t scare my being,
Breathing through the ashes of unkempt dreams, does.
————-
Didn’t the roots tell you,
Flowing, growing, being
Begin within breathing.
——————-
Yellow and white,
Morning and night
Bright and easy,
Life and death,
Power and calm,
Fire and ice,
Versions of light,
Types of sight,
It’s all the same
In the end,
When there is nothing,
None is when all is one.
—————
Don’t be a coward, the braves say
Can’t you build a world,
Where one doesn’t have to brave,
The cowards ask.