Thursday 5 March 2020

कुछ ऐसा कभी था ही नहीं!

कुछ ऐसा कभी था ही नहीं
मेरा अपना जिस के लिए
मैं जान लगा देता,
फिर वो आयी,
उसके हर ख़्वाब को पूरा करने में
जितना मैं कर सकता था
उससे ज़्यादा कर, उसके ख़्वाब
और ख्वाहिशें दोनो पूरी की
और फिर वो चली गयी.

अब, मैं जो कभी सोचा करता था
की कभी तसल्ली से कुछ करूँगा अपने लिए
अब सोचता नहीं हूँ, क्यूँकि मेरे ज़हन से
वो और उसके ख़्वाब और ख़्वाहिशात
उरते ही नहीं है, उम्मीद भी कम ही है

उसको मेरी फ़िक्र नहीं, जानता हूँ
पर उसके अलावा मैंने भी कहाँ करी किसी की
जब तक साँस है, मान लेता हूँ की ज़िंदा हूँ
एक दिन जब साँस नहीं रहेगी तो मैं भी मर जाऊँगा.
कौनसा किसी को फ़र्क़ पड़ रहा है
मेरे जीने मरने से, कौनसा मैं किसी की यादों में रहने वाला हूँ.

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