Sunday 13 November 2016

कुछ अलफ़ाज़, बस यूँ ही -13!

प्यार नहीं आदत है। धीरज रखीये, वक्त के साथ बदल ही जाएगी।
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बेहद से खतरनाक और कुछ नहीं होता।
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वो जो कल तक मेरी आँखें पढ़ लिया करते थे, आज मेरे बोलने पर भी मुझे समझ नहीं पा रहे हैं।
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तुम्हारी याद भी रोज़ शायद इसीलिए आती है, क्यूंकि तुम्हारे ना के बराबर जो लौट आने की उम्मीद है वो अभी भी मेरे पास और साथ है।
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ठैराव को उनका होता है जो रुक जाते हैं, मुसाफ़िरों के नीसब में तो ना जाने कितने आंधी तूफ़ान आते हैं।
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हम सब ज़िदगी में या तो कोई किरदार निभा रहे हैं या निभाना चाह रहे हैं। वो क्या है ना, अपने आप से खुश रहना इंसान की फ़ित्रत में है ही नहीं।
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तब आँखों में नींद होती थी,
आजकल तो वहाँ बस दर्द से ही
मुलाकात होती है।
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जिन आँखों से मुझे इश्क था उन आँखों ने तो मुझे कभी देखा ही नहीं है।
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अपने अंदर की आग ट्टोलने से जिस्म नहीं ज़मीर राख होता है।
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वो भी एक दौर था, जब वक्त ही कुछ और था।


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