Saturday 9 December 2017

ग़ुस्से का असमंजस!

अगर तुम्हें लग रहा है
कि मेरे अंदर ग़ुस्सा भरा
है तो तुम ग़लत नहीं हो,
लेकिन सही इसलिए नहीं हो,
क्यूँकि जिसे तुम ज़रा सा ग़ुस्सा
समझ रहे हो, वो,
ग़ुस्से का सैलाब है
फटने की कगार पर है;
अगर फट गया तो
दिमाग़ की चीथड़े
और दिल के टुकड़े
हो जाएँगे
और जो ना फटा तो
अंदर सब राख हो जाएगा.

शायद इसलिए ही किसी ने
सोच समझ कर कहा था कि
ग़ुस्सा मत करना,
ग़ुस्से से कुछ अच्छा नहीं होगा,
लेकिन अब
उस दोराहे पर खड़े हो कर
यह सोच कर भी क्या.

जब फ़ैसला सिर्फ़ इस बात
का होना है,
की जल कर राख होना है
या जलते हुए को ख़ाक
होते देखना है.


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