Monday 9 April 2018

कुछ अल्फ़ाज़ बस यूँ ही-22!

तेरे हक़ में ना जाने कब से दुआ कर रही हूँ,
की तेरी सलामती का ख़याल ही मेरे क्लब का इत्मिनान है.
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वफ़ा की उम्मीद ना तब थी ना अब है, तू बेवफ़ा रहे पर हमेशा आबाद रहे बस यही दुआ है.
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उस दिल के चीथड़े तुम क्या करोगे जिस दिल को चीर कर हमने सिर्फ़ तुम्हारे लिए रखा है.
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ना जाने कैसा प्यार हो तुम, कि तूफ़ान की तरह आते हो, तबाह करते हो और फिर चले जाते हो. ना जाने कैसी हवा हूँ मैं की तुम कितने भी नाशकारी क्यूँ ना हो मैं साथ ही रह जाती हूँ. चाहती नहीं हूँ, बस रह जाती हूँ. तुम ठीक नहीं हो, तुम ग़लत हो, दर्दनाक हो, ख़तरनाक हो, पर क्या वो हवा छोड़ पायी है उस तूफ़ान का साथ, जो मैं कर पाऊँगी?
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क्लब को इत्मिनान,
दिल को चैन,
तो आ ही जाएगा
वक़्त बीत जाएगा
हर ज़ख़्म भर जाएगा
पर दिमाग़ में
उमड़ते हुए तूफ़ान
का क्या कीजियेगा?
वो आएगा,
सब तबाह कर जायेगा
और आप फिर
सुकून के क़रीब
जाने के जुस्तजू
में जुट जाइयेगा
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बस एक नज़र देख ले, की मैं भी देखना चाहती हूँ कि दुआ क़बूल हो तो वो एहसास क्या है.
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ग़म इस बात का नहीं
की दिन ख़त्म हो जाता है
बस अब शाम की आदत नहीं
तो चाँद की ना मौजूदगी
खटकती है
रात की राहत को
तरसता है मेरा मन
अंधेरे में बस ढूँढता है
अपने आपको
तारों के सहारे
उम्मीद को जीता है मन
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उन्हें भुलाने की नाकाम कोशिशों का
सिलसिला ख़त्म हो गया हो,
तो ज़रा ग़ौर उन यादों पर फ़रमाइयेगा,
जिन्होंने आपको रातों को करवटें बदलने
और दिन में बेचैन होने के अलावा,
किसी और लायक ना छोड़ा
वो तो चले गए बिन अलविदा कहे
और आप है की उम्मीद तक
को दफ़न नहीं कर पा रहे हैं.
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अगर तुम्हारी मुस्कान की क़ीमत
मेरा दर्द है,
तो मुझे मेरे दर्द से
ज़्यादा अज़ीज़ कुछ नहीं.
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वो जो ज़िंदगी से धड़कन चुरा ले गये,
आज पूछ रहे हैं के सब ख़ैरियत है या नहीं
कोई ज़रा उन्हें बता दे की साँस क़ायम है
तो बस ज़िंदा भर हैं.

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