Saturday 6 April 2019

ख़याल!

आज, जब पूरे पाँच दिन हो गए हैं मुझे सोए हुए;
मुझे कमबख़्त नींद फिर नहीं आ रही,
वही पुरानी सर फट जाएगा,
सीना जलन से राख हो जाएगा
आँखे सूख कर तड़पने लगेंगी
वाला जो एहसास वो याद आ रहा है.

मेरे ज़हन में इस लम्हे में भी,
बस उसका ख़याल आ रहा,
वही जो बस एक बार कह दे
की अगर हार भी गए
तो कोई बात नहीं,
अगर थक कर थम गए
तो कोई बात नहीं.

पर वो जिसे आज भी
मैं यहाँ खड़े हो कर
ऊपर आसमान में ढूँढ रही हूँ
वो तो चंद्रमा के पीछे कहीं सो रहा है.

वो, जो अब है नहीं,
आज उसकी आस
में ये तनहा क्लब रो रहा है.

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