Thursday 25 April 2019

ट्रेन और ख़याल!

ज़िंदगी के हर बीतते लम्हे की अहमियत ट्रेन से सफ़र करने के दौरान पता चलती है. आप जब ट्रेन में अपनी जगह पर बैठे होते हैं और अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचने का इंतज़ार कर रहे होते हैं तब पता चलता है की वक़्त बहुत है, और करने को कुछ ख़ास है नहीं.

ट्रेन में बैठ गए, चिप्स खा लिए, चाई-कॉफ़ी या पेप्सी पी ली, खिड़की के बाहर जी भर के देख लिया, इधर-उधर बैठे लोगों से बात चीत हो गयी....और फिर? कुछ नहीं, बस इंतज़ार.

कुछ जगह पर फ़ोन में सिग्नल भी मुश्किल से आता है तो इंटर्नेट का ख़याल करना भी महज़ बेवक़ूफ़ी ही होगी. ऐसे में जब आप कुछ नहीं कर रहे होते, तब आपके ज़हन में हर तरह के ख़याल आते हैं; अच्छे, बुरे, प्यारे, डरावने इत्यादि. पर इन ख़यालों का भी क्या दोष इन्हें और कभी तवज्जो ही नहीं मिलती तो बेचारे जब मौक़ा देखते हैं दौड़े चले आते हैं.

ऐसे लमहों को और होना चाहिए, जब आप कुछ ना करें, और आपके ज़हन में बहुत तरह के ख़याल एक साथ दौड़े. हर तरह के एहसास को आप महसूस करें. ये ज़रूरी है. अंततः हम और आप जीते-जागते इंसान हैं, मशीन नहीं.


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