Monday 1 July 2019

कुछ अल्फ़ाज़ बस यूँ ही-30!

मुझे तुम्हारी क़ैद से नहीं,
अपनी ज़ंजीरों से आज़ाद होना है.
———————
ख़्वाहिश की आग में,
ख़्वाब सेकना भी तो एक काम है,
क्यूँ हर चीज़ का ये जहान
ढूँढता अंजाम है.
—————-
वो जो कभी नहीं आएँगे,
उनके इंतज़ार में मैं बैठा हूँ,
कम से कम इतनी तो तसल्ली है की
ज़िंदगी सिर्फ़ और सिर्फ़ उसके पीछे
बर्बाद कर रहा हूँ.
——————-
अगर मेरा जनाज़ा उठने से पहले
बस एक बार वो कह भर देते
की उन्हें मेरे होने का इल्म है
तो कम से कम मैं मर तो अपने
दर्द से रिहा हो कर जाता.

पर ख़ैर, ये बात भी तो ग़लत नहीं की उनके दिए दर्द ने
इक पागल आशिक़ को शायर बना दिया.
———————
मेरा दिल तुम्हारा,
मेरी जान तुम्हारी,
मेरा चैन, मेरी हर अमानत तुम्हारी,
बस ये जो साँस चल रही है,
ये मैंने तुम्हारी याद के नाम की है.
————-
वो जिन पर हम जान भी लुटा दें
तब भी कोई बात नहीं,
वो जो हमारी साँस तक ले लें
तब भी कोई गिला नहीं,
पर, वो जब हमें इंकार करने तक
के क़ाबिल ना समझें
तब हम कैसे अपने इस दिल को सम्भालें.
—————
वक़्त पर घड़ी तक का ज़ोर नहीं,
हम और आप कौन होते हैं इसे बदलने वाले.
——————-
इल्म तो आपको कभी होगा नहीं,
लेकिन ये जो रातें हमने सुबह में तब्दील होते देखी हैं,
उनमें आपकी यादों का बड़ा साथ रहा,
वरना कमबख़्त तन्हाई तो हमारा जनाज़ा उठवा ही देती.
—————
काश तुम्हारी याद भी किसी दीवार की तरह होती,
ज़रा सा रंग पुतवाया
और सब साफ़
————-
ज़रा सी हवा क्या चली,
हल्की सी धूल क्या उड़ी
उन्हें लगा कि,
कमबख़्त तूफ़ान ही आ गया.
लगता है, तुमसे उन्होंने कभी दिल नहीं लगाया है,
मालूम होता है,
उनको कभी अपने बिखरने का डर तक नहीं लगा है,
तभी हवा की चंचलता को तूफ़ान समझते हैं.

No comments:

Post a Comment