Wednesday 10 December 2014

भलाई!

जो लोग कहते हैं आजकल भलाई का ज़माना नहीं है.  वो लोग उस प्रजाति के होते हैं जिन्होंने शायद काफी समय से दर्पण नहीं देखा होता है. अब आप सोचते होंगे की मैं भला ऐसा क्यूँ कह रही हूँ. मैं ऐसा इसलिए कह रही हूँ क्यूंकि भलाई कोई मिठाई तो है नहीं जो खाने से ये या बाटने से कम हो जाये, तो फिर ये भली भलाई आखिर कम या ख़तम आखिर हो कैसे रही है?
मैंने काफी दिनों तक इस विषय पर विचार किया फिर कहीं जा कर ये समझ आया की भलाई नहीं भले लोगों का अकाल पड़ गया है इस दुनिया मैं. आजकल लोग रूपया, पैसा, घर, गाडी, बंगला, जयादात को एकत्रित करने मैं इतने व्यस्त हो गए हैं की अपने अपनों के लिए ही समय नहीं निकाल प् रहे हैं, औरों की तो कोई क्या ही बात करे. बड़ा अफ़सोस हुआ मुझे ये जान कर की आजकल दोस्ती-यारी तो मानो बोझ ही बन गयी है हम लोगों पर.
कल-परसों एक बुज़ुर्ग आदमी से मेरी बस युहीं राह चलते बात हो रही थी, बातों ही बातों मैं उन्हों ने कहा " अर्थी को कन्धा देने ये दौलत नहीं बल्कि चार आदमी ही आयेंगे" ये बात सुनकर मेरे मानो कान ही खड़े हो गए, पर दो पल बाद जब मैंने ये बात सोची तो मैं भी इस बात से पूरी तरह सहमत  हो गयी.
काश ये दुनिया पैसे के आगे कुछ सोच पाती तो वाकई बहुत खूबसूरत होती, तब शायद इस भलाई की इतनी कमी भी महसूस ना होती
लेकिन फिर भी उम्मीद पे दुनिया कायम है, तो फिर भलाई को मारा हुआ घूषित करना भी उचित नहीं होगा, इसलिए अगर  हो सके तो कभी अमीर इंसान बनने की दौड़ से फुर्सत मिलने  पर एक बार दर्पण ज़रूर देख लिजियेगा अपने अन्दर की भलाई से ज़रूर वाकिफ हो जायेंगे!



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