Thursday 25 December 2014

बेचैनी!

कुछ रातें ऐसी होती हैं जब मुझे नींद नहीं आती, एक अजीब सी बेचैनी होती है. लगता है कुछ फसा हुआ है दिल और दिमाग मे, कुछ ऐसा जो मैं शब्दों मैं बयां नहीं कर सकती, बस महसूस कर सकती हूँ. ये बैचैनी किसी एक विषय तक सीमित नहीं होती. कभी देश की चिंता, कभी मानवता की मृत्यु का डर, कभी अपने भविष्य को ले कर विचार और भी न जाने क्या क्या समस्याओं के बारे मैं विचार करके बैचैन होती रहती हूँ मैं.
क्या कारण है इस बैचैनी का मुझे नहीं मालूम, पर इतना ज़रूर जानती हूँ की इस बैचैनी ने मेरी जिज्ञासा को बढ़ावा दिया है, और ये अच्छी बात है. जब ये घुटन भरी बैचैनी सब्र की सीमा को पार कर जाती है तब मैं गाने गाती हूँ एक ही पंक्ति को बार बार गाती हूँ ताकि मेरा ध्यान भटक जाए और मैं थोडा बेहतर महसूस करूँ. फैज़ अहमद फैज़ के गाने सुन कर भी बैचैनी नाम के दानव से मुक्ति पायी जा सकती है.
बस और क्या कहूँ बैचैनी के बारे मैं? बेचैनी बुरी तो है ही पर शायद थोड़ी ज़रूरी भी है!


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