Friday 19 December 2014

मासूमियत: एक गुनाह?

कल सुबह की ही तो बात थी फरहान और आमिर अपनी अम्मी की डांट खा कर उठे, फिर आधी नींद मे स्कूल के लिए तैयार हुए, दुआ करी, नाश्ते मैं अम्मी के बनाये हुए लज़ीज़ पराठे खाए, अब्बू से रिकक्षा के लिए पैसे लिए, बस्ता उठाया और दोनों भाई एक दुसरे के कंधे पर हाथ रख कर  जोर से खुदा हाफिस बोल कर घर से निकल गए. रास्ते मैं फरहान ने अपने छोटे भाई आमिर के लिए बशीर चाचा की दूकान से मिठाई ली, और फरहान ने खूब चटकारे ले कर चलते चलते मिठाई खायी. हस्ते, खेलते, मुस्कुराते दोनों भाई स्कूल पहुँच गए.  वैसे तो आमिर १२ साल का था और अपने आप अपनी कक्षा में जाने के काबिल भी था पर फरहान को उससे उसकी कक्षा मे छोड़े बिना चैन नहीं आता था.
पूरा स्कूल दोनों भाई के बीच की मोहोबत की मिसालें देता था. आमिर के लिए उसके भाई जान से बड़ा कोई हीरो नहीं था, उसके भाई जान उसके सबसे अच्छे दोस्त, भाई, और ज़रुरत पड़ने पर अम्मी का किरदार भी बखूबी निभा लेते.  आमिर के लिए उसके भाई जान खुदा से भी बढ़कर हैं और हमेशा रहेंगे. वो बस अपने भाई जान को आवाज़ लगाता और उसकी पुकार सुनते ही फरहान अपना ज़रूरी से ज़रूरी काम छोड़ कर भाई के पास दौड़ा चला जाता. फरहान की अगर कभी तबियत खराब होती तो आमिर अपने भाई जान के सिरहाने से एक पल के लिए भी दूर नहीं होता. उनको दवाई भी वो खुद ही पिलाता, खाना भूक न लगने पर भी भाई जान खा लो ना कह कह कर खिलाता, दोनों भाई स्कूल मैं भी खाना एक दुसरे के साथ ही खाते थे.  और मजाल थी किसी की फरहान के रहते आमिर को कोई कुछ कह दे.
कल भी एक आम दिन ही था. ब्रेक की घंटी बजते ही फरहान अपने छोटे भाई आमिर के पास पहुंचा और दोनों भाइयों ने मिलकर खाना खाया, पानी पिया, और फिर वापिस अपनी अपनी कक्षा मे चले गए. तकरीबन एक घंटे बाद पूरे स्कूल मे गोलियों की आवाज़ आ रही थी, आमिर भाग कर अपने भाई जान की कक्षा मे गया और फरहान को कस कर गले लगा लिया, फरहान ने बोला पगले मैं हूँ ना आपके पास मत डरो, आमिर बस अपने भाई जान से चिपका ही रहा. कुछ देर बाद फरहान की नज़र कुछ आदमियों पर पड़ी जो बन्दुक ले कर उसी कमरे मे आ रहे थे जहाँ पर वो दोनों थे. फरहान ने जल्दी से अपनी पीठ दरवाज़े की ओर करी और आमिर खूब ज़रूर से अपने गले लगा लिया, जैसे की लगे की सिर्फ एक ही इंसान है उस कमरे मे. दो मिनट बाद उन ज़ालिम बंदूक वाले आदमियों ने फरहान की पीठ पर गोलियां चला दी.
लेकिन फरहान ने अपनी आखरी सांस तक अपने भाई को अपने सीने से लगाये रखा, बस उसकी आँखें बंद ही होने वाली थी उसका शरीर खून से सना हुआ था, तभी उसने अपने भाई को खिड़की ओर इशारा करके कहा की उस रास्ते से भाग जाओ. आमिर फिर भी हाथ नहीं छोड़ रहा था, फरहान ने आमिर के हाथ को चूमा ओर फिर उसकी आँखें बंद हो गयी. आमिर की आँखों से सिर्फ आंसू बह रहे थे, मुह से एक आवाज़ भी नहीं निकली उस मासूम के मूह से. 8 घंटे तक वो बस अपने भाई का हाथ पकडे उसकी लाश को देखता रहा. फिर जब सब शांत हुआ तब कुछ सनिकों ने आमिर को गोद मे  और फरहान  को कब्र मे बंद कर के बहार ले जाया गया. अम्मी ने आमिर को देख कर उससे अपने सीने से लगाया और फूट फूट कर रोने लगी, दो पल बाद ही फरहान की कब्र आ गयी. अम्मी अपनी औलाद की कफ़न देख कर बेहोश हो गयी, बड़ी मुश्किल से उन्हें होश मे लाया गया, फिर अब्बा और आमिर ने फरहान की कब्र को कन्धा दिया और कब्रिस्तान की ओर चल दिए. आमिर के मुह से अभी तक एक आवाज़ भी नहीं निकली, मानो जिंदा लाश बन गया था वो.
आज पूरे 48 घंटे हो गए हैं आमिर के गले से एक बूँद पानी तक नीचे नहीं गया है, अभी तक एक आवाज़ नहीं निकली है. अम्मी का रो रो कर  बुरा हाल है, अब्बा ने कुछ हिम्मत जुटा रखी है पता नहीं कैसे. शायद ये सोच कर की वो टूट गए तो बाकी लोगों को कोन संभालेगा.
अब तो बस एक ही सवाल है: क्या मासूमियत एक गुनाह है?
उफ़! पता नहीं क्या हो रहा है ये. पता नहीं कब रुकेगा ये, कभी कभी तो ये भी लगता है की रुकेगा भी या नहीं यूँ
मज़हब के नाम पे मासूमों की जान लेना? क्या अब  कोई धर्म इंसानियत से भी ज्यादा बड़ा  हो गया है?
ना जाने और कितनी कब्र  खुदेंगी अब?
ना जाने कितने घरों की ईद और दिवाली पे ग्रहण लगेगा?
ना जाने और क्या क्या होगा!!!!
इंसानियत तुम्हारी बड़ी याद आ रही है आजकल!!!!! :(


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