Wednesday 6 April 2016

कुछ अलफ़ाज़, बस यूँ ही -10!

वक़्त की मार का प्रकोप तो देखिये जनाब आज अपने ही खवाब ना जाने कितने बड़े लालच जैसे लग रहे है।
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जितनी शिद्दत से लोग हमारे जाने का इंतज़ार कर रहे हैं, अगर उसकी आधी शिद्दत से भी हमने जीने की कोशिश की होती तो आज हालत और हालात दोनों ही बेहतर होते।
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बड़ी ही खूबसूरत चीज़ होती है
इंतज़ार
अपनी और अपने अपनों
की इह्मियत समझा जाती है
ये इंतज़ार की घडी
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दर्द को पनाह देने के लिए रुक गए तो वक़्त और ज़िन्दगी दोनों गवा बैठेंगे।
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मरने की ये बात नहीं
जीने का जज़्बात नहीं
कैसी अजब गज़ब पहेली है
ज़िन्दगी बड़ी अलबेली है।
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वही किस्से वही हालात बस ना जाने कैसे बदल गया ये अंदाज़....
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आज उस कबाड़ के राख को पुराने ज़ख्मों पे मल लिया.......लगता है अब कुछ हिसाब तो पूरा हो ही जाएगा।
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आज सपनों का हिसाब माँगा है कल साँसों का मांगेंगे, आखिर कब तक जियेंगे ऐसे? 
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आज मेरे अश्कों से फ़र्क नहीं पड़ रहा कल मेरे चले जाने से क्या फर्क पड़ेगा....
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वो मेरे लफ़्ज़ों को
अपने रचाए चक्रह्युह मे 
कैद करने की कोशिशि करते रहे
और मै खवाबों की उड़ान मै मसरूफ रहा।

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