Wednesday 15 July 2015

कुछ अलफ़ाज़, बस यूँ ही - 04!

जिन्हें मेरी खामोशी नहीं समझ में नहीं आती, उन्हें मेरे अलफाज़ों की कीमत कहाँ पता होगी ।रिश्तों मैं एहसान नहीं एहसास होता है
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दुनिया बदलती नहीं है बस पलट जाती है....कभी अच्छे के लिए कभी बुरे के लिए..
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हर लम्हा हो जादू भरा........आँखों में रंग हो.....सपनों में जीने के नए ढंग हो..
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आखिर कब तक अपने अतीत की आग से अपने आज को राख करोगी???
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चैन की सांस के इंतज़ार में.............साँसों ने ही अलविदा कह दिया...
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प्रतिशोध की आग में भस्म होने से कहीं बैहतर है जुनून की आग में तपना ।
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रात बेचैन होने के लिए नहीं..........इबादत करने के लिए बनी है।
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अपने अंदर की कला को मारने से पहले खुद मर जाना.......क्योंकि कला को तो मार नहीं पाओगे।अपने अंदर की कला को मारने से पहले खुद मर जाना.......क्योंकि कला को तो मार नहीं पाओगे।
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अब शायद मंजिल ही ढूड़ लेगी हमें .............
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इंसानियत ही इकलौता धर्म है जिसका ठेकेदार हर इंसान है।

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