Tuesday 19 July 2016

कुछ अलफ़ाज़, बस यूँ ही -11!

आज फिर नींद नहीं आई
तुम्हारी याद फ़िरसे जो आ गयी
ना जाने कब तक होगा ये
जब तक भी, होगा तब तक चैन
ना मुझे मिलेगा
ना ही नींद को।
-------
फिर तोड़ दिया? अभी ही तो उन कोनों पे गोंद लगायी थी जहाँ से मुब्बत की जगह तड़प से पनपने वाला इंतज़ार बहा करता था। खैर, तुमने तो आज फिर अपना इतिहास दोहरा ही दिया। मेरा दिल जो एक बार फिर तोड़ दिया।
----------
ये तुम्हारे लौट आने का इंतज़ार ही तो है, जिसने मेरी हिम्मत और बेबसी दोनों को एक साथ कायम रखा है।
---------
अब तो ईद का चाँद भी आ गया, ना जाने तुम्हारी बेहद कीमती मुस्कान कब लौट कर आयेगी।
---------
ये जो तुम्हारी यादें हैं, जो मैंने और तुमने साथ में मिलकर बनायी थी उनका मैं क्या करूँ? ये यादें तो मुझे तुम्हारी कमी से भी ज्यादा खल रही हैं ।
-------
दर्द को अश्कों में बहाने के बजाए अल्फ़ाज़ों में तबदील किया जाए तो ज्यादा जल्दी सुकून मिलता है।
--------
तूफ़ान तो बस ज़िदगी में आया करते हैं, बाकी सब तो बस हवा के झोके हैं ।
---------
इंतज़ार बहुत बुरी चीज है। लेकिन जिस दिन इंतज़ार की उम्मीद भी चली गयी क्या सांस लेने की उम्मीद भी बचेगी।
---------
दिल मस्जिद, इश्क नमाज़, तेरी आँखों का सुकून अल्लाह |
-------
मेरी खामोशी में इतने आँसू और चीखें छुपी हैं, कि जिस दिन ये टूटी , उस दिन कुछ ऐसा होगा जो ना मैं सम्हाल पाऊँगी ना तुम।

No comments:

Post a Comment