Sunday 24 May 2015

रात की रौशनी!

आज की रात बहुत अजीब सी है, आज मुझसे मेरे अश्क अपने आपको रिहा करने की भीक नहीं मांग रहे वे भी आज शांत सा महसूस कर रहे हैं. पहली बार एक रात के अँधेरे में मुझे रौशनी दिखाई दे रही है.  अजीब सी रोशी है कुछ अलग सा एहसास है. तारे गिनना इतना सुहाना कभी नहीं लगा है मुझे, जितना आज लग रहा है. पानी पीने के बाद एक अजीब सी ठंडक महसूस हो रही है मन को, क्यूँ हो रहा है ऐसा पता नहीं, बस हो रहा है. अन्दर से बहुत खुश महसूस कर रही हूँ अपने आप को शायद इसीलिए की में थोडा दूर जा रही हूँ उस जगह से जहाँ मुझे अपने आप को रोज़ साबित करना पड़ता है.
मोबाइल बंद करने के बाद ये एहसास हुआ की शांति से ज्यादा सुन्हेरी आवाज़ तो किसी की भी नहीं होती. आज मैं अकेली अँधेरे में बैठ कर भी तनहा नहीं महसोस कर रही हूँ. इस रोज़- रोज़ की भाग दौड़ से अलग की शांति से ज्यादा अनमोल तो शायद ही कुछ हो. चैन से लेट कर गाने सुनने से ज्यादा सुकून देने वाले लम्हे बड़ी मुश्किल से मिलते हैं.
बड़े दिनों बाद आज मेरा दिमाग फट नहीं रहा. शांत है आज वो भी. कुछ नहीं सोच रहा है आज वो.  दिन के चुभते उजाले से ये रात का सुकून देने वाला अँधेरा बहुत अच्छा है. कमसे कम इस अँधेरे में घुटन तो नहीं है. न जाने क्यूँ सुबह पसंद आती है सबको. मुझे तो रातों की शांति बेहद पसंद है.
मैं तो यही कहूँगी की जब सूर्य जब सर पर हो तो सो जाओ, न जलो उसकी आग में और जब रात हो जाये उठ कर चन्द्रमा की शीतल उर्जा को अपने ऊपर हावी होने दो. चढ़ने दो उस सुकून भरे नशे को. बहार आओ इस अमीरी-गरीबी की इस कभी ना ख़तम होने वाली दौड़ से.
साँसों और  धडकनों को बस महसूस करो. अपने होने के एहसास को महसूस करो. बाकी सब तब बहुत ही फ़िज़ूल लगने  लगेगा तब. ये घर पैसा नाम शौहरत और भी हज़ार चीज़ें बहुत बेबुनियादी लगेंगी. हाँ! लेकिन ज़िन्दगी बहुत प्यारी और अपनी सी लगेगी!!!


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