Tuesday 9 June 2015

वक़्त और हम!

ना हमने कभी
वक़्त की इफाज़त करी 
ना वक़्त ने कभी 
हमारी करी |
लेकिन आजतक 
हम और वक़्त 
दोनों ही 
बखूबी निभा रहें |
क्यूँ?
क्यूंकि, 
अब हम दोनों 
के तालुक 
उस मकाम 
पर पहुँच गए हैं 
जहाँ 
ना वक़्त को कोई 
उम्मीद है हमसे 
और 
हमे तो खैर 
कभी थी ही 
नहीं इस वक़्त से 
ना तब, ना अब


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